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सत्रीया नृत्य

"सत्रीया नृत्य " भारत के 8 शास्त्रीय नृत्यों में से एक है। सत्तर शब्द - सत्र से लिया गया है जिसका अर्थ -मठ और नृत्य का अर्थ है-तरीका, असम की वैष्णव मठ में ये नृत्य 500 वर्षों से अभी तक जीवित है। जिसको सत्रास के नाम से जाना जाता है। यह नृत्य नाटिका, मुख्य रूप से असम के वैष्णव सन्त व समाज सुधारक शंकरदेव और उनके परम् शिष्य माधवदेव द्वारा लिखे व निर्देशित किये जाते थे। इसमे भगवान कृष्ण के जीवन पर आधारित संगीत, नृत्य व नाटक द्वारा लीलायें की जाती हैं। सत्रीया नृत्य  जप,कथा ,नृत्य व संवाद का समन्वय है।

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त्रिभंग मुद्रा

" त्रिभंग मुद्रा " ओडिसी नृत्य से सम्बंधित है।जो कि उड़िसा का पारम्परिक नृत्य है। भरतीय इतिहास में नृत्य एवं नाट्य-कला की एक शारिरिक मुद्रा है। इसमे एक पैर मोड़ा जाता है और देह थोड़ी,किन्तु विपरीत दिशा में कटी और ग्रीवा पर वक्र बनाया जाता है। यह प्राचीन काल से ही भारत का लोकप्रिय नृत्य रहा है।

चैत्य एवं विहार

चैत्य विहार कुछ शैल कृत बौद्ध गुफाओं को चैत्य कहते हैं। जबकि अन्य को विहार। दोनो में मूल अंतर यह है कि चैत्य पूजा स्थल होते हैं  जबकि विहार निवास स्थल होते हैं। चैत्य का शाब्दिक अर्थ होता है चिता सम्बन्धी।शवदाह के पश्चात बचे हुये अवशेषों को भूमि में गाड़कर जो समाधियाँ बनाई जाती हैं  उसे प्रारम्भ में चैत्य या स्तूप कहा गया। इन समधियों में महापुरुषो के धातु अवशेष सुरक्षित थे। अतः चैत्य उपासना के केंद्र बन गए। चैत्य के समीप ही भिक्षुओं को रहने के लिए आवास बनाये गए जिन्हें विहार कहते हैं।

स्वाभिमान योजना

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2011 फरवरी माह में वित्तीय समग्रता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर " स्वाभिमान योजना " योजना का शुभारंभ किया गया। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य समाज के गरीब व निर्धन व्यक्तियों को आर्थिक सहायता व प्रगति का लाभ व्यवसायिक संवाददाताओं (बैंक साथी) द्वारा प्रत्येक स्तर तक पहुंचना है।