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महिला सशक्तिकरण अभियान। भाग- 1

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   दृष्टिकोण से महिला सशक्तिकरण का उदय

महिला सशक्तिकरण के विषय मे अगर हम बात करे तो हमारे देश की कुछ घटनाएं काफी प्रभाव पूर्ण रही हैं।जिसमें की भारतीय वायुसेना में देश की पहली महिला लड़ाकू पायलट की नियुक्ति हुई है। यहाँ तक कि भारत के मंगल यान मिशन की आश्चर्य जनक शुरुआत और 104 नैनो उपग्रहों को एक ही रॉकेट के द्वारा कक्षा में स्थापित करने वाली टीम में महिला वैज्ञानिक भी शामिल थी।
                       हमारे देश की महिलाएं इसके अलावा ओलंपिक, अंतरराष्ट्रीय खेलों आदि आयोजनो में शानदार प्रदर्शन कर रही हैं।और अपने कार्यों से देश को गौरवांवित कर रही हैं।
                        भारत की शिक्षा व्यवस्था में महिलाओं को लैंगिक समानता तो मिली ही है साथ ही साथ कानून, चिकित्सा, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रबंधन आदि तकनीकी और व्यवसायिक शिक्षा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। भारत मे एक तिहाई सर्टिफाइड इंजीनियर और तीन चौथाई से भी ज्यादा स्वास्थ्य कर्मी महिलायें हैं। उधमिता के क्षेत्र में भी देश की 20 प्रतशित महिला उधमी हैं। विभिन्न क्षेत्रों में हिस्सेदारी बढ़ने के कारण सार्वजनिक और निजी जगहों पर महिलाओं का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
                 अगर हम राजनीति के क्षेत्र में बात करे तो आंकड़े पहले से भी ज्यादा बेहतर हुये हैं। ग्राम पंचायतों में निर्वाचित महिला उम्मीदवार की औसत संख्या तकरीबन 46 फीसदी है।ग्रामीण स्तर पर 13 लाख से भी ज्यादा महिलाओं के सत्ता में होने के कारण देश के परिदृश्य में जमीनी स्तर पर बदलाव आ रहा है।
                        
                आजादी के शुरुआती वर्षो के चुनावों में सिर्फ 45 महिलायें  ही आम चुनावों में हिस्सा लेती थी। परन्तु अब समय बदल रहा है। 2014 के चुनावों में लगभग 668 महिलायें चुनावी मैदान मे आयीं।
                   महिला सशक्तिकरण के इस अभियान में सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह है कि हमारी भारत सरकार ने महिलाओं के स्वास्थ्य पर जो बेहतरी हांसिल किया है वो बहुत ही उत्साह जनक रहा है।क्योंकि बिना स्वस्थ महिला के महिला सशक्तिकरण के अभियान की सफल नही किया जा सकता है।1950-51 में महिलाओं की औसत आयु 31.7 वर्ष होती थी। लेकिन बीते वर्षों के आंकड़े के अनुसार उनकी आयु बढ़ कर 70 वर्ष हो गई है। 2001-03 और 2011-13 के दशकों के दौरान मातृत्व मृत्यु दर घट कर आधी हो गयी है।
                       हमारे देश की सरकार ने महिलाओं को बराबरी का स्थान और उनके सम्पूर्ण विकास के लिए सुरक्षित माहौल देने का भरसक प्रयत्न किया है। परन्तु दुर्भाग्य से सरकार के सकारात्मक कार्यों के बावजूद भी देश मे महिलाओं के अब भी अपने जीवन और आजादी को लेकर गम्भीर ख़तरों का सामना करना पड़ रहा है। कामकाज के तमाम योगदान के बावजूद महिलाओं को घरेलू या कामकाजी निर्णयों में उचित अधिकार नही दिया जाता है। अगर हम भारतीय महिलाओं का सचमुच में सशक्तिकरण करना चाहते हैं तो भेदभाव और हिंसा के सिलसिले को खत्म करने की आवश्यकता है।
                तो आइए हम सभी संकल्प करते हैं कि अपने मन में ऐसे विचारों को उत्पन्न नहीं होने देंगे तो हमारी मानसिकता को गन्दा करें और महिलाओं के प्रति सम्मान का दृष्टिकोण उत्पन्न नहीं होने दे।
                 क्योंकि बिना स्वस्थ्य विचारों के मानसिक बदलाव अधूरा है और बिना मानसिक बदलाव के सामाजिक बदलाव अधूरा है और जिस दिन स्वस्थ सामाजिक बदलाव हुआ उस दिन देश की प्रगति कोई नहीं रोक सकता है।
                

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