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महिला सशक्तिकरण अभियान। भाग- 3

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         गर्भ से ही शक्ति का सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण का प्रारंभ सर्वप्रथम मां की कोख से ही होता है ।गर्भ में पल रही बेटी को मारने पर रोक लगा कर सरकार ने महिला सशक्तिकरण के अभियान को एक नई दिशा दी है। इसके लिए भारत सरकार ने गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीकी (लिंग चयन निषेध) अधिनियम 1994 अधिनियमित किया। इसके साथ ही साथ "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" अभियान के जरिए हमारी भारत सरकार ने बेटियों के अपरिमित महत्व के प्रति समाज में समझ विकसित करते हुए समस्या के सामाजिक आर्थिक पहलुओं पर भी काम कर रही है।
            स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए अनेक कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं । जिनमें जीवन पर्यंत सतत देखभाल का नजरिया अपनाया जा रहा है ताकि स्त्री जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में समान ध्यान केंद्रित करने की पुख्ता व्यवस्था की जा सके। इसके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों किशोरियों और  प्रजननीय आयु समूह की महिलाओं के लिए व्यापक कार्यक्रम चला रही है। मार्च 2018 तक करीब 1031805 आशा कार्यकर्ता और 220707 सहायक नर्स व दाई कार्यरत थी, अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कर्मी के रूप में नियुक्त किया गया था। यही महिलाएं देश में स्वास्थ्य देखभाल ढांचे का आधार तैयार कर रही है।
                प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पी एम एस एम ए) शुरू किया गया है, जिसके अंतर्गत सभी गर्भवती महिलाओं को  प्रत्येक महीने की 9 तारीख ( गर्भ के 9 महीने की अवधि के प्रतीक के रूप में) को गुणवत्तापूर्ण प्रसव पूर्व देखभाल सुविधाएं प्रदान की जाती है।   
           सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व नियमित देखभाल सुविधायें पूरे महीने प्रदान की जाती है।
                प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के अंतर्गत सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में प्रसूति विशेषज्ञों,स्त्री रोग विशेषज्ञों /रेडियोलॉजिस्ट /सामान्य चिकित्सकों द्वारा ए एन सी सेवाएं प्रदान की जाती है ।
                    (पी एम एस एम ए) द्वारा ग्राम स्तर पर ग्राम स्वास्थ्य और  पोषण दिवसो पर  आयोजन करके तथा स्वास्थ्य केंद्रों में नियमित रूप से प्रसव पूर्व प्रदान की जा रही हैं।
               गर्भवती महिलाओं के लिए कम से कम चार प्रसव पूर्व देखभाल (ए एन सीज) कार्यक्रम सुनिश्चित किए गए हैं। क्योंकि गर्भवती महिलाओं को इस दौरान आयरन, फोलिक एसिड,कैल्सियम आदि पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इसलिए गर्भ में किसी प्रकार की जटिलताओं का पता लगाने के लिए उपरोक्त चार जांच कार्य अनिवार्य किए गए हैं। ताकि सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित किया जा सके।
                         गर्भ की अवधि में आवश्यक देखभाल संबंधित जानकारी प्रदान करने के लिए गर्भवती महिलाओं को "मां और शिशु संरक्षण " (एमसीपी )कार्ड और सुरक्षित मातृत्व पत्रिका भी प्रदान की जाती है।
                    स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय मां एवं शिशु  ट्रैकिंग सिस्टम (एम सी टी एस)/ जननी शिशु स्वास्थ्य (आर सी एच) पोर्टल और किलकारी मोबाइल सेवाएं आदि संचालित करता है। लक्षित लाभार्थियों को आयु- विषयक संदेश भेजे जाते हैं। और कॉल करके उनसे संपर्क भी किया जाता है ताकि मां और शिशु दोनों को स्वस्थ रखा जा सके।
                           जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जे एस एस के ) सभी गर्भवती महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में सिजेरियन सेक्शन सहित पूर्णतया निशुल्क और खर्च रहित प्रसव कराने का अधिकार प्रदान करता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत निशुल्क दवाएं,नैदानिक सेवायें, रक्त और भोजन आदि की व्यवस्था की जाती है। साथ ही रैफरल के मामले में घर से संस्थान और वापस घर तक निशुल्क परिवहन व्यवस्था की जाती है। जरूरतमंद महिलाएं इस कार्यक्रम के अंतर्गत परिवहन का लाभ उठाने के लिए 102 या 108 पर कॉल कर सकती हैं।
                     स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय जननी सुरक्षा योजना कार्यक्रम भी लागू कर रहा है । जिसके अंतर्गत स्वास्थ्य संस्थानों में प्रसव को बढ़ावा देने के लिए नकदी अंतरित की जाती है। इन सब प्रयासों के परिणाम स्वरुप देश में स्वास्थ्य संस्थानों में प्रसव में इजाफा हुआ है, जो 47 %( डी एल एच एस 3,2007-08 )की तुलना में बढ़कर 78.9% पर पहुंच गया हैं।
                  किसी भी शिशु के जीवन में प्रथम 1000 दिन महत्वपूर्ण होते हैं , 2 वर्ष की आयु तक व्यक्ति के मस्तिष्क का 85% विकास हो जाता है । बच्चों के पालन-पोषण की बेहतरीन पद्धतियों के बारे में माता-पिता और देखभाल करने वालों को शिक्षित करने के लिए एक सजग प्रयास के रूप में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एक पुस्तक "जर्नी ऑफ़ फर्स्ट 1000 डेज( हिंदी संस्करण प्रथम 1000 दिन की यात्रा )प्रकाशित की गई है ।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम(आरकेएसके) शुरू किया है। इसके लक्ष्यों में किशोरावस्था स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाना और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना जैसे सैनिटरी नैपकिन ,आयरन, फोलिक एसिड आदि शामिल है ।
              राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत सप्ताहिक आयरन, फोलिक एसिड अनुपूरण हेतु स्कूली लड़कों और लड़कियों तथा स्कूल से बाहर रहने वाली  बालिकाओं को सप्ताहिक निगरानी आयरन, फोलिक एसिड की गोलियों को वितरित किया जाता है । और पेट के कीड़ों को मारने के लिए वर्ष में दो बार अल्बेंडाजोल की गोलियां वितरित की जाती है।
              किशोरियों को देखभाल और परामर्श सेवाएं प्रदान करने के लिए विभिन्न स्वास्थ्य की देखभाल केंद्रों में 7516 किशोर अनुकूल हेल्थ क्लीनिक भी  स्थापित किए गए हैं।
                 बालिकाओं का स्वास्थ्य जीवन और बचपन सुरक्षित करने के लिए कई तरह के सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है । शिशुओं को विशेषज्ञतापूर्ण देखभाल प्रदान करने के लिए जिला स्तर पर विशेष नवजात स्थरीकरण इकाइयाँ और उप जिला स्तर पर नवजात स्थिरीकरण इकाइयाँ और नवजात केयर कॉर्नर स्थापित हैं। नवजातों की देखभाल के लिए आशा कार्यकर्ता उनके घरों तक सेवाएं देती है ।
               2 वर्ष की आयु के बच्चों और गर्भवती महिलाओं का पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए "मिशन इंद्रधनुष" नाम का एक विशेष कार्यक्रम 2014 से शुरू किया गया।
          गंभीर कुपोषण से ग्रसित बच्चों को विटामिन ए की खुराक के साथ ही साथ विशेषज्ञतापूर्ण देखभाल प्रदान करने के लिए 1150 पोषण पुनर्वास केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं। और राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम चल रहे हैं । इस कार्यक्रम का उद्देश्य जन्म संबंधी विकृतियों, बीमारियों ,खामियों, व्रद्धि संबंधी देरी का शीघ्र पता लगाना है । हाल में प्रस्तावित "आयुष्मान भारत कार्यक्रम " के अंतर्गत भी 'हेल्प और वेलनेस सेंटर' के जरिए महिलाओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाता है ।
                इस प्रकार मातृ स्वास्थ्य और गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए ही हम भारत की महिलाओं के स्वास्थ्य, सशक्तिकरण और उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे।

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